जन्मदिन विशेष: शिवाजी के जीवन से जुड़े रोचक
मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी राजे भोसले का जन्म 19 फरवरी, 1627 में मराठा परिवार में शिवनेरी, महाराष्ट्र राज्य में हुआ था. शिवाजी के पिता शाहजी और माता जीजाबाई थी. माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरंगना नारी थीं. इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण, महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था.
दादा कोणदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था. राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्यपरायण व कर्मठ योद्धा शिवाजी के जीवन से जुड़े रोचक प्रसंग:
(1) शिवाजी की वीरता की बात करें, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं, क्योंकि बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बच्चों के साथ उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे.
(2) युवावस्था में बचपन के खेलों ने वास्तविकता का रूप ले लिया. शिवाजी ने पहला आक्रमण 16 वर्ष की आयु में पुणे में स्थित तोरण दुर्ग पर किया था. इस सफलता के बाद उनकी बहादुरी की चर्चा सारे दक्षिण में होने लगी.
(3) शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शिवाजी को बंदी बनाने की योजना बनाई , जिसमें असफल रहने के बाद आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया. इस घटना का पता चलने पर शिवाजी आगबबूला हो गए. उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया.
(4) शिवाजी ने अपने पिता को कैद से छुड़ाने के साथ ही पुरंदर और जावेली के किलों पर कब्जा कर लिया.
(5) इस घटना के बाद औरंगजेब ने जयसिंह और दिलीप खान को शिवाजी के पास पुरंदर संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए भेजा. संधि के मुताबिक शिवाजी ने मुगल शासक को 24 किले देने पड़े. इसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया और कैद में डाल दिया. लेकिन औरंगजेब की यह ख्वाहिश लंबे समय तक पूरी न रह सकी, क्योंकि शिवाजी उस कैद से जल्द भाग निकले. इसके बाद शिवाजी ने अपने पराक्रम के बल पर सभी 24 किलों को दोबारा जीता, इस बहादुरी के बाद शिवाजी को छत्रपति की उपाधि मिली.
(6) शिवाजी एक समर्पित हिन्दू थे, पर उन्हें धार्मिक सहिष्णुता का पक्षधर भी माना जाता है. शिवाजी ने कई मस्जिदों के निर्माण में अनुदान दिया, इस वजह से उन्हें हिन्दू पंडितों के साथ मुसलमान संतों और फकीरों को भी सम्मान प्राप्त था.
(7) शिवाजी अपने अभियानों का आरंभ दशहरे के मौके पर किया करते थे.
(8) तीन हफ्तों तक चले बुखार के कारण 3 अप्रैल, 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई.
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